केरल क्यों बनता है

बीमारियों का एंट्री प्वाइंट?

कोरोना, निपाह और जीका वायरस जैसी कई वायरल बीमारियों का पहला मामला केरल में ही आया था सामने

scroll
Article by: Anju Rawat

कोरोना निपाह, जीका वायरस हो या फिर मंकीपॉक्स... ये बीमारियां सबसे पहले केरल में रिकॉर्ड हुई थीं। साल 2020 में कोरोना वायरस का पहला मामला केरल में ही डिटेक्ट हुआ था। कोविड-19 के शुरुआत में केरल राज्य में काफी हो-हल्ला मच गया था। हालांकि, फिर धीरे-धीरे पूरे देश में ही कोरोना वायरस के मामले मिलने लगे। यानी कोरोना वायरस का पहला केस केरल में मिला और फिर महामारी देशभर में फैल गई। इतना ही नहीं, कोरोना वायरस के अधिकतर नए वैरिएंट की एंट्री भी केरल से ही हुई है। बीते कुछ सालों में मंकीपॉक्स, निपाह, टोमेटो और जीका वायरस जैसी बीमारियां भी केरल से ही देश में दाखिल हुई हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि दक्षिण के इसी राज्य से सारी बीमारियां या महामारियां क्यों फैलती हैं?

केरल राज्य: एक नजर

14 जिला
3.60 करोड़ जनसंख्या
96.2 फीसदी साक्षरता
11,125.59 sq. km जंगल
38,863 sq. km क्षेत्र

केरल क्यों है ज्यादातर संक्रामक बीमारियों का एंट्री प्वाइंट?

अगर केरल को भारत में आने वाली बड़ी बीमारियों का एंट्री प्वाइंट कहा जाए, तो गलत नहीं होगा, क्योंकि केरल के रास्ते से ही मंकीपॉक्स, कोरोना और निपाह वायरस जैसी बीमारियां पहली बार भारत में दाखिल हुई थीं। अगर देखा जाए, तो 10 से ज्यादा वायरल और नॉन वायरल बीमारियों का पहला केस सबसे पहले केरल में सामने आया, जिसके बाद इन बीमारियों ने पूरे भारत को अपनी चपेट लिया।

दरअसल, केरल का स्वास्थ्य विभाग हमेशा ही ऐसी बीमारियों से निपटने के लिए अलर्ट रहता है। केरल में सबसे पहले बीमारियों के दस्तक के पीछे वहां की भौगोलिक स्थिति भी कुछ हद तक जिम्मेदार है। एक्सपर्ट्स की मानें तो वहां फैले हुए जंगल और मानसून पैटर्न भी राज्य को बीमारी के लिए काफी संवेदनशील बनाते हैं। वहीं, राज्य के अधिकतर लोग जंगल के पास बसे हुए हैं। लोगों का पशु-पक्षियों और जानवरों के बीच सीधा संपर्क भी वायरस और बैक्टीरिया के फैलने की वजह बनता है।

डॉ. रणदीप गुलेरिया
AIIMS के पूर्व निदेशक
केरल का हेल्थ सिस्टम काफी एक्टिव है। जैसे ही किसी बीमारी का आउटब्रेक होता है, डॉक्टर ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग करवाने पर जोर देते हैं। टेस्टिंग केरल में किसी बीमारी का केस जल्दी डायग्नोज होने का एक मुख्य कारण हो सकता है। यहां का हेल्थ सिस्टम भी काफी स्ट्रॉन्ग है, जो बीमारियों से निपटने के लिए हमेशा तैयार रहता है। इसके अलावा, केरल की धरती भव्य पहाड़ियों और खूबसूरत जलाशयों से भरी हुई है। इसकी वजह से जूनोटिक बीमारियों (पक्षियों और जानवरों से फैलने वाली बीमारियां) के, इंसानों में फैलने की संभावना बढ़ जाती है। दरअसल, केरल में जंगल काफी ज्यादा है, तो जानवरों और इंसानों के बीच संपर्क ज्यादा होता है। इसकी वजह से बीमारियां जल्दी फैल सकती हैं।

केरल में ही क्यों आती हैं सबसे पहले वायरस वाली बीमारियां?

कई बीमारियां सबसे पहले केरल राज्य में डिटेक्ट होती हैं और फिर देश के अन्य हिस्सों में फैलती हैं। केरल अधिकतर बीमारियों का एंट्री प्वाइंट क्यों बनता है, इसके कारणों के बारे में जानने के लिए हमने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के सेक्रेटरी जनरल डॉ. आर.वी. अशोकन से बातचीत की

राज्य की भौगोलिक स्थिति

डॉ. आर.वी. अशोकन की मानें, तो राज्य की भौगोलिक स्थिति इसका पहला कारण है। दरअसल, राज्य में जंगल का क्षेत्र काफी अधिक है। बढ़ती जनसंख्या की वजह से लोग जंगलों के आस-पास बस रहे हैं। ऐसे में अक्सर लोग पशु-पक्षियों और जानवरों के बीच सीधा संपर्क में आ जाते हैं। इसकी वजह से जूनोटिक बीमारियां फैलने की संभावना बढ़ जाती है। निपाह वायरस भी इसी वजह से चमगादड़ों से इंसानों तक पहुंचता है।

केरल के हेल्थ प्रोफेशनल

केरल के नर्स और अन्य फार्मा वर्कर्स, न सिर्फ देश में, बल्कि दुनियाभर में कार्यरत हैं। यानी केरल के हेल्थ प्रोफेशनल्स, राज्य के साथ ही, देश और दुनियाभर को सर्विस देते हैं। ऐसे में जब वे दूसरे देश से राज्य में वापस आते हैं, तो उनके साथ संक्रमण या वायरस आने की संभावना बढ़ जाती है। बाहर के देशों में कार्यरत हेल्थ प्रोफेशनल्स, अनजाने में अपने साथ संक्रमण ला सकते हैं।

इसके अलावा, राज्य के कई बच्चे भी मेडिसिन या नर्सिंग की पढ़ाई करने के लिए अलग-अलग देशों में रह रहे हैं। ये लोग जब पढ़ाई पूरी करके या फिर किसी महामारी की वजह से राज्य में वापस आते हैं, तो अपने साथ अनजाने में अज्ञात बीमारियां ला सकते हैं और फिर दूसरों में फैला सकते हैं।

Dr R.V. Ashokan

बेहतर हेल्थ सिस्टम

केरल का हेल्थ सिस्टम देश के अन्य राज्यों की तुलना में काफी अच्छा है। केरल का स्वास्थ्य विभाग हर बीमारी का निदान करने और निपटने के लिए हमेशा तैयार रहता है। राज्य का बेहतर हेल्थ सिस्टम होने की वजह से बीमारी जल्दी पकड़ में आ जाती है।

स्वास्थ्य विभाग भी अलर्ट जारी करके लोगों को मिलते-जुलते लक्षण महसूस होने पर अस्पताल आने के लिए जागरूक करता है। केरल में बीमारियों की तुरंत जांच की जाती है। साल 2018 में जब निपाह वायरस की चर्चा चल रही थी, तब भी राज्य में अलर्ट जारी कर दिया गया था। इसके बाद तेजी से जांच शुरू हुई, तो राज्य में निपाह वायरस का पहला केस रिकॉर्ड हो गया।

घनी आबादी

जनगणना 2011 के अनुसार, केरल राज्य की जनसंख्या 3.34 करोड़ थी। वहां लिंगानुपात प्रति 100 महिलाओं पर 92 पुरुषों का था। आपको बता दें कि 2001 से 2011 के दौरान राज्य की जनसंख्या में 15.6 लाख की वृद्धि हुई थी। वहीं, राष्ट्रीय आयोग के तकनीकी समूह की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2024 में राज्य की जनसंख्या 3.60 करोड़ होने का अनुमान है।

केरल में लगातार बढ़ती जनसंख्या और घनी आबादी भी बीमारियों के दस्तक देने और फैलने का एक मुख्य कारण हो सकता है। दरअसल, देश में अधिक आबादी होने की वजह से कई लोग पढ़ाई और काम के लिए बाहर के देशों में भी चले जाते हैं। फिर जब वे वापस आते हैं, तो अपने साथ संक्रमण ला सकते हैं।

अधिक साक्षरता दर

केरल राज्य सबसे अधिक साक्षरता दर के लिए भी जाना जाता है। यहां अन्य राज्यों की तुलना में ज्यादा शिक्षित लोग रहते हैं। आपको बता दें कि केरल की साक्षरता दर 96.2 फीसदी है, जो कि अन्य राज्यों की तुलना में काफी अधिक है। दरअसल, शिक्षित लोग अपने स्वास्थ्य और वातावरण को लेकर ज्यादा अलर्ट रहते हैं। ऐसे में जैसे ही किसी बीमारी को लेकर चर्चा चलती है, तो वहां के लोग लक्षण महसूस होने पर टेस्टिंग जरूर करवाते हैं, जिससे बीमारी जल्दी डिटेक्ट हो जाती है।

डॉ. आर.वी. अशोकन
सेक्रेटरी जनरल, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन
केरल में बीमारी दर बेहद अधिक है। इसकी वजह से केरल सरकार के लिए इस स्थिति में सुधार करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। लेकिन, यहां के लोग काफी जागरूक हैं। कोई भी लक्षण महसूस होने पर वे तुरंत स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के पास चले जाते हैं। इससे केरल में मृत्यु दर कम रहती है। यानी केरल में मृत्यु दर, बीमारी दर की तुलना में कम है। केरल राज्य अपनी समृद्ध वनस्पति और जीव-जंतुओं के लिए जाना जाता है। इसकी वजह से केरल में बीमारियां और संक्रमण होने का जोखिम अधिक होता है। केरल में बीमारियों की स्थिति में सुधार लाने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में निगरानी और सुधार करना बहुत जरूरी है।

केरल में कब-कब आईं बीमारियां?

2018 रैट फीवर
2018 निपाह वायरस
29 जनवरी 2020 कोरोना वायरस
8 जुलाई 2021 जीका वायरस
6 मई 2022 टोमैटो फीवर
14 जुलाई 2022 मंकीपॉक्स
21 मई 2024 ब्रेन ईटिंग अमीबा
मई 2024 वेस्ट नाइल फीवर
Source- dhs.kerala.gov

इन बीमारियों का पहला केस केरल में हुआ दर्ज

रैट फीवर- 2018

'रैट फीवर' को लेप्टोस्पायरोसिस भी कहते हैं। ये एक तरह का बैक्टीरियल इंफेक्शन है, जिसके कारण रोगी को तेज बुखार आता है और समय पर इलाज न मिल पाने के कारण उसकी मौत हो सकती है। लेप्टोस्पायरोसिस आमतौर पर चूहों, कुत्तों और दूसरे स्तनधारियों में पाया जाने वाला रोग है, जिसके वायरस की चपेट में इंसान भी आ जाते हैं। बाढ़ के दौरान इस बीमारी का खतरा बढ़ जाता है, क्योंकि बाढ़ के समय मनुष्य, पशु और अन्य छोटे जीव एक ही जगह पर इकट्ठा हो जाते हैं और पानी के कारण इस वायरस के फैलने की संभावना भी बढ़ जाती है।

इस बीमारी की चपेट में आए हुए जानवरों को छूने, उनसे निकले लार या मल से, संक्रमित पानी के संपर्क में आने से, मिट्टी और कीचड़ के संपर्क में आने से ये रोग तेजी से फैलता है। इसके अलावा, लेप्टोस्पायरोसिस की चपेट में आए रोगी के खांसने, छींकने और मल-मूत्र से भी ये रोग दूसरे लोगों में फैल सकता है। 2010 से पहले केरल में हर साल रैट फीवर की वजह से लगभग 100 मौतें हो जाती थीं। जनवरी से जुलाई 2018 तक केरल में लेप्टोस्पायरोसिस के कारण 28 मौतें हुईं।

निपाह वायरस- 2018

निपाह वायरस (NiV) एक जूनोटिक बीमारी है। यह बीमारी जानवरों से इंसानों में आसानी से फैल सकती है। इसके अलावा निपाह वायरस एक से दूसरे व्यक्ति में भी फैल सकता है। यह वायरस सुअर और चमगादड़ जैसे जानवरों में भी गंभीर बीमारी का कारण बन सकता है। निपाह वायरस का पहला मामला भी केरल में ही सामने आया था।

आपको बता दें कि 2018 में केरल राज्य में निपाह वायरस का आउटब्रेक हुआ था। 2023 में 9 सितंबर को केरल के कोझिकोड जिले में निपाह का पहला मामला रिकॉर्ड हुआ था। इसके बाद निपाह वायरस के मामले देश के अन्य राज्यों में भी सामने आने लगे थे। अगर दुनिया की बात करें, तो निपाह वायरस पहली बार 1999 में मलेशिया में मिला था। भारत में साल 2001 और 2007 में भी निपाह वायरस के मामले सामने आए थे।

कोविड 19- 2020

साल 2020 में कोरोना वायरस महामारी ने दुनियाभर में कोहराम मचा दिया था। दुनियाभर में लॉकडाउन तक की स्थिति आ गई थी। आपको बता दें कि कोविड-19 SARS-CoV-2 वायरस के कारण होने वाला एक संक्रामक रोग है। यह एक से दूसरे में व्यक्ति में आसानी से फैल सकता है। वैसे तो कोरोना वायरस किसी भी व्यक्ति को अपनी चपेट में ले सकता है लेकिन हृदय, डायबिटीज, पुरानी सांस या कैंसर रोगियों में कोविड-19 होने की संभावना ज्यादा होती है। खांसी, बुखार, शरीर में दर्द, सूंघने की शक्ति कम होना आदि कोरोना वायरस के आम लक्षण हो सकते हैं।

आधिकारिक डाटा के मुताबिक कोरोना वायरस की शुरुआत 2019 में चीन के वुहान में हुई थी। मार्च 2020 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे महामारी घोषित कर दिया था। भारत में कोरोना वायरस का पहला मामला 29 जनवरी 2020 में केरल के त्रिशूर जिले में पाया गया था। इसके बाद कोरोना वायरस धीरे-धीरे देशभर में फैल गया और इसकी वजह से लाखों लोगों ने अपनी जान गंवाई।

जीका वायरस- 2021

जीका एक मच्छर जनित वायरस है। यह एक प्रकार का फ्लेविवायरस है, जो जीका संक्रमण का कारण बनता है। दरअसल, जीका वायरस साल 1947 में युगांडा में पहली बार एक बंदर में पाया गया था। इसके बाद, 1950 के दशक में अफ्रीकी देशों में इंसानों में इसका संक्रमण मिला। बुखार, सिरदर्द, जोड़ों में दर्द, आंखों में लालिमा आदि जीका वायरस के लक्षण होते हैं। इसके लक्षण आमतौर पर संक्रमण के 3-14 दिन बाद शुरू होते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जीका वायरस को 1 फरवरी 2016 को पब्लिक हेल्थ एमरजेंसी घोषित कर दिया था। आपको बता दें कि साल 2016 में भारत में जीका वायरस का पहला मामला गुजरात में मिला था। लेकिन 8 जुलाई 2021 में जीका वायरस का पहला केस केरल के तिरुवनंतपुरम जिले में मिला था। जीका वायरस संक्रमित व्यक्ति या जानवर के खून, ब्रेस्ट मिल्क, पेशाब, सीमन या फिर शरीर से निकलने वाले तरल पदार्थ में मिल सकता है और इन्हीं के जरिए फैल सकता है।

टोमैटो फीवर- 2022

देश में टोमैटो फीवर की एंट्री भी केरल राज्य से ही हुई थी। टोमैटो फीवर के लक्षण, फ्लू जैसी वायरल बीमारी से ही मिलते-जुलते थे। मतली, डायरिया, बुखार, उल्टी और फफोले आदि टोमैटो फीवर के लक्षण हो सकते हैं। टोमैटो फीवर के अधिकतर मामलों में दर्दनाक या लाल रंग के छाले भी नजर आ सकते हैं। आपको बता दें कि देश में 6 मई 2022 को टोमैटो फीवर के पहले मामले की पुष्टि हुई थी, जो कि केरल के कोल्लम जिले में पाया गया था।

इतना ही नहीं, जुलाई 2022 तक इस फीवर से 80 से अधिक बच्चे संक्रमित हो गए थे, जो कि 5 वर्ष से कम उम्र के थे। यह बीमारी संक्रामक होती है और 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को प्रभाव में ज्यादा लेती है। यह बीमारी संक्रमित व्यक्ति के पास रहने या उसके द्वारा इस्तेमाल की गई वस्तुओं के संपर्क में आने से फैल सकती है।

मंकीपॉक्स- 2022

मंकीपॉक्स को Mpox के नाम से भी जाना जाता है। मंकीपॉक्स, वायरस के संक्रमण से होने वाली एक बीमारी है। यह वायरस, उसी परिवार का हिस्सा है, जो चेचक का कारण बनता है। मंकीपॉक्स होने पर त्वचा पर दाने, फुंसी या छाले जैसे लक्षण नजर आ सकते हैं। यह एक जूनोटिक बीमारी है, यानी मंकीपॉक्स जानवरों और लोगों के बीच फैल सकता है।

आपको बता दें कि मंकीपॉक्स के ज्यादातर मामले मध्य और पश्चिम अफ्रीका में सामने आते हैं। भारत की बात करें, तो इसके पहले मामले की पुष्टि 14 जुलाई 2022 को केरल के कोल्लम शहर में हुई थी। तब से केरल सरकार, मंकीपॉक्स की रोकथाम के लिए हर संभव प्रयास कर रही है।

ब्रेन ईटिंग अमीबा- 2024

हाल ही में केरल के कोझिकोड जिले में ब्रेन ईटिंग अमीबा संक्रमण की वजह से 14 साल के लड़के की मौत हो गई। इस संक्रमण को अमीबिक एन्सेफलाइटिस के नाम से भी जाना जाता है। आपको बता दें कि यह दिमाग को प्रभावित करने वाला वाला एक दुर्लभ और खतरनाक संक्रमण है। यह संक्रमण अमीबा नेग्लरिया फाउलेरी नाम के एक-कोशकीय जीव के कारण फैलता है, जो तालाबों और झीलों में पाया जाता है।

साल 2024 की बात करें, तो राज्य में इसके संक्रमण का पहला मामला 21 मई को मलप्पुरम में मिला था। वहीं, दूसरा मामला कन्नूर जिले में 25 जून को सामने आया, जिसमें 13 साल की लड़की की मौत हो गई थी। इसके अलावा साल 2023 में भी इस संक्रमण का पहला मामला केरल के अलाप्पुझा जिले में ही सामने आया था।

वेस्ट नाइल फीवर- 2024

वेस्ट नाइल फीवर, क्यूलेक्स प्रजाति के मच्छरों से फैलता है। यह जापानी और पीले बुखार का कारण बनने वाले वायरस से संबंधित होता है। आपको बता दें कि यह वायरस पक्षियों और जानवरों के साथ ही, इंसानों में भी फैल सकता है। जब संक्रमित मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है, तो इससे वह व्यक्ति भी संक्रमित हो सकता है। हालांकि, यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे में नहीं फैलता है।

वैसे तो इस वायरस से संक्रमित 80 फीसदी लोगों को लक्षण महसूस नहीं होते हैं लेकिन जब संक्रमण ज्यादा बढ़ जाता है, तो बुखार, सिरदर्द, शरीर में दर्द और थकान जैसे लक्षणों का अनुभव हो सकता है। इस मामले में कुछ लोगों की ग्रंथियों में भी सूजन आ जाती है।

आपको बता दें कि वेस्ट नाइल फीवर का पहली बार 1937 में युगांडा में पता चला था। फिर साल 2011 में इस बुखार ने पहली बार केरल में दस्तक दी। इसके बाद, मई 2024 में भी केरल के त्रिशूर, कोझिकोड और मलप्पुरम जिलों में वेस्ट नाइल बुखार के मामलों की पुष्टि हुई थी।

सवाल आपके अनुसार केरल सरकार को इससे बचने के लिए क्या करना चाहिए?
जवाब अन्य राज्यों की तुलना में केरल का हेल्थ सिस्टम काफी बेहतर है। केरल सरकार पहले से ही बीमारियों से निपटने के लिए सही कार्य कर रही है। सरकार ने बीमारियों को जल्दी डायग्नोस करने के लिए लैब बनाने पर जोर दिया है। कोरोना और निपाह वायरस के समय पर भी सरकार ने लोगों में काफी जागरूकता फैलाई थी। जब भी केरल में कोई नई बीमारी आती है, तो संक्रमित लोगों के संपर्क में आए लोगों की स्क्रीनिंग जल्दी-जल्दी की जाती है, ताकि इसे फैलने से बचाया जा सके।
सवाल देश में किसी भी बीमारी के प्रकोप को कम करने के लिए आप क्या सलाह देना चाहेंगे?
जवाब एक अच्छा सर्विलांस सिस्टम (जांच सिस्टम) सिर्फ केरल ही नहीं, पूरे देश के लिए बनना चाहिए क्योंकि बीमारियों का आउटब्रेक, किसी भी राज्य में हो सकता है। ऐसे में हर राज्य को बीमारियों से निपटने के लिए तैयार रहना चाहिए। जल्दी निदान इसका सबसे बेहतर समाधान हो सकता है। जब किसी बीमारी को जल्दी डायग्नोस कर लिया जाता है, तो उसे फैलने से बचाया जा सकता है। वहीं, जब बीमारी देर से पकड़ में आती है, तो इसे फैलने से रोकना काफी मुश्किल हो जाता है। सैंपल लेकर टेस्ट करना और स्क्रीनिंग करना जरूरी है।

पिछले कुछ सालों के आंकड़ों पर नजर डालें, तो पता चलता है कि केरल कई बीमारियों के लिए एंट्री प्वाइंट बना है। कोरोना, निपाह वायरस, जीका वायरस, वेस्ट नाइल फीवर, रैट फीवर, चिकनगुनिया वायरस समेत कई बीमारियों ने सबसे पहले केरल में ही दस्तक दी थी।