Real Story on Pregnancy in Hindi: महिलाओं का प्रेग्नेंसी से लेकर पोस्टपार्टम तक का सफर कई मामलों में चुनौतीभरा रहता है। प्रेग्नेंसी के दौरान डायबीटिज से लेकर हाई बीपी और बच्चे का वजन न बढ़ना जैसी समस्याएं होना और पोस्टपार्टम के दौरान डिप्रेशन, ब्रेस्टफीड में दिक्कतें जैसी कई परेशानियां मां बनने के सफर को थोड़ा मुश्किल बना देती हैं। लेकिन जब मां की गोद में शिशु आता है, तो वह सब समस्याएं भूल जाती है। उनके संघर्ष और हिम्मत की कहानियां ओनली माय हेल्थ के Maa Strong कैंपेन में शेयर कर रहे हैं, जो अपनी प्रेग्नेंसी की चुनौतियों से बाहर निकलकर दूसरों के लिए मिसाल बनी हैं। कुछ ऐसी ही कहानी है दिल्ली की रहने वाली ए आर स्वाति की, जिनके प्रेग्नेंसी के सफर में कई मुश्किलें आई, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। प्रेग्नेंसी के दौरान उनकी परेशानियां और कैसे उन्होंने इन पर काबू पाया, जानते हैं इस लेख में।
स्वाति को पहली तिमाही में जेस्टेशनल डायबिटीज की हुई समस्या
स्वाति कहती हैं,”प्रेग्नेंसी से पहले पीसीओडी (PCOD) की समस्या का पता चला था, हालांकि इससे मुझे किसी भी तरह की परेशानी नहीं हुई थी। दरअसल, मैं प्रेग्नेंसी के दौरान लगातार ऑफिस में काम कर रही थी। दिन में 8 से 9 घंटे डेस्क जॉब के चलते तीसरे महीने मुझे जेस्टेशनल डायबिटीज हो गई। जब मुझे इसके बारे में पता चला, तो मैंने न्यूट्रिशनिस्ट से डाइट चार्ट लिया और उसे पूरी तरह से फॉलो भी किया। उस समय तो मुझे ज्यादा परेशानी नहीं थी, लेकिन डायबिटीज ने मुझे 32वें हफ्ते में काफी परेशान किया था। उस समय मेरा इंसुलिन बहुत ज्यादा ही 300 तक जाने लगा था।”
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स्वाति को हुई दूसरी तिमाही में ब्लीडिंग
ब्लीडिंग के बारे में भावुक होते हुए स्वाति ने बताया,”चौथे महीने में मुझे थोड़ी सी ब्लीडिंग हुई तो मैंने तुरंत डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर ने अल्ट्रासांउड किया और सब कुछ नार्मल बताया। इसके 7 दिन बाद मुझे बहुत हैवी ब्लीडिंग हुई और तुरंत ही मुझे अस्पताल में भर्ती किया गया। जांच के दौरान पता चला कि मुझे प्लेसेंटा प्रिविया (Placenta Previa) है। इसमें बच्चेदानी का मुंह कवर हो जाता है। डॉक्टर ने मुझे पूरी तरह से आराम करने की सलाह दी। मैंने करीब 2 से 3 महीने तक आराम किया और मेरी स्थिति काफी हद तक बेहतर हो गई। लगातार रेस्ट करने से मेरा शरीर बिल्कुल ही इनएक्टिव हो गया। फिर मैंने कसरत करना शुरू किया। मुझे कई तरह की समस्याएं थी, इसलिए प्रेग्नेंसी के दौरान मैंने अपने लाइफस्टाइल में कई बदलाव किए।”
प्रेग्नेंसी के दौरान लाइफस्टाइल में किए बदलाव
जब हमने लाइफस्टाइल में बदलावों के बारे में पूछा, तो स्वाति ने बताया कि डॉक्टर ने जो भी उन्हें सलाह दी थी, वह उन्होंने मानी थी।
- चीनी बिल्कुल बंद कर दी।
- पूरी प्रेग्नेंसी प्रोसेस्ड फूड से परहेज रखा।
- नमक की मात्रा कम कर दी।
- हाई प्रोटीन डाइट ली।
- खाली पेट कभी न रहना।
- प्रेग्नेंसी में वॉक और कसरत की।
डिलीवरी में सिस्ट निकला
डिलीवरी के दौरान भी स्वाति को काफी समस्या रही। इस बारे में बताते हुए स्वाति ने कहा,”34वें हफ्ते में मुझे फेक पैन दिया गया, लेकिन तीन दिन बीतने के बाद भी मुझे दर्द नहीं हुआ। इसके बाद डॉक्टर ने सर्जरी कराने की सलाह दी। इन तीन दिनों में मैं काफी परेशान हो गई थी। डॉक्टर ने सर्जरी की तो बताया कि उन्होंने बेटी के साथ सिस्ट भी निकाला है। मैं काफी रिलैक्स और खुश महूसस कर रही थी क्योंकि मेरी बेटी गोद में थी। उस समय मैं सब दुख-दर्द भूल गई थी। ऐसा लग रहा था कि इस नन्हीं सी जान के लिए इतनी तकलीफे तो मैं झेल ही सकती थी। मुझे लगा कि अब ज्यादा परेशानी नहीं होगी। लेकिन मेरा सोचना गलत निकला।”
पोस्टपार्टम का सफर रहा मुश्किलों भरा
स्वाति डिलीवरी के बाद की परेशानियों के बारे में बात करते हुए कहती हैं,”डिलीवरी के बाद मुझे 6 दिन बुखार रहा। पहले तो लगा कि शायद सर्जरी के कारण न हो, लेकिन फिर टेस्ट कराने के बाद पता चला कि मुझे यूरिन इंफेक्शन हो गया है। डायबिटीज की वजह से सर्जरी के टांके ठीक नहीं हो रहे थे और साथ ही UTI की वजह से बुखार और दर्द ने मुझे तोड़ दिया। इस सब का नतीजा यह हुआ कि मैं अपनी बेटी को ब्रेस्टफीड नहीं करा पाई। मेरा पोस्टपार्टम डिप्रेशन बढ़ता ही जा रहा था। मैं सारा दिन रोती रहती थी और रोने का कारण भी समझ नहीं आता था। यह सब देखकर मेरे पति ने मुझे समझाया और मुझे इस डिप्रेशन से निकलने में बहुत मदद की।”
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पोस्टपार्टम को ऐसे किया मैनेज
स्वाति कहती हैं, “पोस्टपार्टम डिप्रेशन से निकलने के लिए मेरे पति ने मुझे मोटिवेट किया। मैंने लोकेशन बदली और मैं कुछ महीने के लिए अपने रिश्तेदार के यहां चली गई। जगह, मौसम और लोग बदलने से दिमाग भी काफी हद तक फ्री रहा। मैंने मेडिटेशन करना शुरू किया, इससे मुझे बहुत मदद मिली। डाइट पर ध्यान दिया और कसरत करना शुरू किया। खुद को समय दिया और इससे मैं खुद को बेहतर महसूस करने लगी थी। डिलीवरी के बाद हर महिला को खुद के लिए समय निकालना चाहिए ताकि पोस्टपार्टम डिप्रेशन जैसी समस्याओं को मैनेज किया जा सके।”
FAQ
प्लेसेंटा प्रीविया का मतलब क्या होता है?
प्लेसेंटा प्रीविया में प्लेसेंटा सर्विक्स या यूट्रस की ओपनिंग को आंशिक रूप से या पूरी तरह कवर कर लेता है। इस समस्या के कारण डिलीवरी के पहले, इस दौरन या इसके बाद महिला को गंभीर रूप से ब्लीडिंग हो सकती है।जेस्टेशनल डायबिटीज कब होती है?
जेस्टेशनल डायबिटीज आमतौर पर प्रेग्नेंसी के 20 से 24 हफ्ते के बाद शुरू होता है। अगर शरीर में चर्बी जमा हो जाती है, या कैलोरी ज्यादा हो जाती है, तो जेस्टेशनल डायबिटीज होने का रिस्क रहता है।यूटीआई के लक्षण क्या हैं?
पेशाब करने में जलन, बार-बार पेशाब आना, पेशाब में बहुत ज्यादा दुर्गंध आना, पेट के निचले हिस्से में दर्द रहना और गंभीर यूटीआई में पेशाब में खून आना, बुखार, ठंड लगना और उल्टी जैसी समस्या भी हो सकती हैं।