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Article by: Meera Tagore

दिल्ली में रहने वाली 34 वर्षीय सुमन अपनी दूसरी प्रेग्नेंसी के आठवें महीने में है। उसकी शादी महज 24 साल की उम्र में हो गई थी और पहली प्रेग्नेंसी 27 साल की उम्र में हुई थी। उस दौरान सुमन को किसी भी तरह की कोई विशेष परेशानी नहीं हुई। सामान्य लक्षणों और थोड़ी-बहुत सावधानियों के साथ सुमन ने 9 माह बाद हेल्दी बच्चे को जन्म दिया।

लेकिन, दूसरी प्रेग्नेंसी का सफर सुमन के लिए बिल्कुल अलग है। इन दिनों उसे न सिर्फ शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि उसे गर्भकालीन मधुमेह यानी जेस्टेशनल डायबिटीज (Gestational Diabetes) भी हो गया। यही नहीं, जब उसने सेकेंड प्रेग्नेंसी प्लान करने के बारे में सोचा, तब भी उसे कंसीव करने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। करीब एक-डेढ़ माह की कोशिश, डॉक्टर द्वारा सजेस्ट किए गए जरूरी टेस्ट और लाइफस्टाइल में किए गए जरूरी बदलाव करने के बाद वह नेचुरल तरीके से कंसीव कर सकी।

लेकिन, उसकी परेशानी यहीं खत्म नहीं हुई। चूंकि, उसे जेस्टेशनल डायबिटीज की शिकायत हो चुकी थी, ऐसे में उसे अपनी जीवनशैली और खानपान में कुछ अहम बदलाव करने पड़े। यहां तक कि पहली तिमाही में उसे बहुत ज्यादा मूड स्विंग्स, मॉर्निंग सिकनेस और चक्कर आने जैसी कई परेशानियां निरंतर होती रहीं। गायनेकोलॉजिस्ट की मदद से धीरे-धीरे उसकी कंडीशन में सुधार होने लगा। अब वह आठवें माह की प्रेग्नेंसी के इस सफर को इन उतार-चढ़ावों के साथ एंजॉय कर रही है। फिलहाल वह डिलीवरी के लिए खुद को मेंटली-फिजिकली तैयार कर रही है। डॉक्टर ने उसे रेगुलर वॉक, मेडिटेशन और योग करने की सलाह दी है।

Suman
सुमन की प्रेग्नेंसी का सफर
मेरी पहली प्रेग्नेंसी बहुत ही सामान्य थी, लेकिन दूसरी प्रेग्नेंसी बिलकुल अलग है। दूसरी प्रेग्नेंसी में मुझे कंसीव करने से लेकर प्रेग्नेंसी के सफर तक में काफी मुश्किलें रहीं। खासकर, पहले तीन महीने में मॉर्निंग सिकनेस, थकान और चिड़चिड़ापन रहता था। सेकंड ट्राइमेस्टर नॉर्मल रहा। लेकिन तीसरी तिमाही में मुझे फिर से काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। सुमन अटल, 34 वर्षीय, नई दिल्ली

इन दिनों ज्यादातर महिलाएं 30 साल की उम्र के बाद प्रेग्नेंसी प्लान करती हैं। इसका कारण है, महिलाओं का करियर पर फोकस करना और फाइनेंशियली इंडिपेंडेंट होने के बाद ही शादी और प्रेग्नेंसी के बारे में सोचना। जब महिला को लगता है कि वह प्रेग्नेंसी और बेबी के लिए तैयार है, तभी वह मां बनने जैसा अहम फैसला उठाती है। हालांकि, ये बात अलग है कि 30 प्लस उम्र के बाद कंसीव करना अपने आप में एक चुनौती होती है। वृंदावन और नई दिल्ली स्थित मदर्स लैप आईवीएफ सेंटर की चिकित्सा निदेशक, स्त्री रोग और आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. शोभा गुप्ता की राय है कि 25 से 30 साल के बीच की उम्र कंसीव करने के लिए सबसे अच्छी उम्र होती है। इस उम्र में महिलाएं बहुत फर्टाइल होती हैं और प्रेग्नेंसी की जर्नी में भी किसी तरह की परेशानी नहीं आती है।

बहरहाल, महिलाएं चाहे किसी भी उम्र में मां बनें, उन्हें इस जर्नी में कई तरह की मेंटल-फिजिकल परेशानियों से गुजरना पड़ता है। इस सफर को आसान बनाया जा सकता है। जानते हैं, कैसे? इसके लिए जरूरी है कि आप प्रेग्नेंसी के हर चरण को अच्छी तरह समझें, जानें और कंसीव करने के बाद जरूरी सावधानियां बरतें। इस लेख में हम आपको प्रेग्नेंसी से जुड़ी सभी अहम बातों के बारे में बताएंगे। यहां आप जानेंगे कि आखिर प्रेग्नेंसी की अलग-अलग तिमाही में किस तरह के लक्षण नजर आ सकते हैं, भ्रूण का विकास किस तरह होता है और गर्भवती महिलाएं अपनी जीवनशैली तथा डाइट में किस तरह के जरूरी बदलाव कर सकती हैं।

प्रेग्नेंसी की पहली तिमाही

यूसीएसएफ हेल्थ ऑर्गनाइजेशन में प्रकाशित आलेख की मानें, तो भ्रूण के सही विकास के लिए पहली तिमाही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। पहली तिमाही यानी कंसीव करने के बाद से शुरुआती तीन महीने। इसे प्रेग्नेंसी का पहला चरण भी कहा जा सकता है। इस समय महीला के शरीर में बहुत सारे परिवर्तन होते हैं और शिशु इसी चरण में आकार लेने लगता है। आपको बता दें कि मिसकैरेज होने का रिस्क भी पहली तिमाही में ही ज्यादा रहता है। ऐसे में, यह और भी ज्यादा जरूरी हो जाता है कि महिला को पहली तिमाही में नजर आने वाले लक्षणों और भ्रूण के विकास से जुड़ी जरूरी बातें पता हों।

पहली तिमाही में नजर आने वाले लक्षण

नेशनल हेल्थ सर्विस (NHS) के अनुसार पहली तिमाही 12 सप्ताह तक चलती है। इस दौरान महिला को कई तरह के लक्षण नजर आ सकते हैं। इसे आप प्रेग्नेंसी के शुरुआती लक्षण के तौर पर पर भी जान सकते हैं, जैसे-

  • पीरियड्स न होना
  • ब्रेस्ट में दर्द या अकड़न (टेंडरनेस) महसूस होना
  • बार-बार मितली आना यानी मॉर्निंग सिकनेस होना
  • थकान महसूस करना
  • स्वाद का बदलना
  • किसी भी चीज की तीव्र गंध महसूस करना
  • बार-बार पेशाब आना
  • योनि से व्हाइट डिस्चार्ज होना
  • कभी-कभी स्पॉटिंग होना
  • पीरियड जैसा क्रैंप महसूस करना
  • स्किन का डल होना
  • ब्लोटिंग होना

पहली तिमाही में जरूरी मेडिकल टेस्ट

प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण पहली तिमाही होती है, क्योंकि इसी दौरान बच्चे के ऑर्गन बनते हैं। इसी समय महिला को सबसे ज्यादा शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। डॉ. रुचि श्रीवास्तव, प्रोफेसर और वरिष्ठ सलाहकार, स्त्री रोग विभाग, शारदा हॉस्पिटल

डॉ. श्रीवास्तव कहती हैं, “आमतौर पर प्रेग्नेंसी का पता लगाने के लिए घर पर यूरिन टेस्ट किया जा सकता है। इसके लिए एक खास किट बाजार में उपलब्ध है, जो पेशाब में मौजूद Human Chorionic Gonadotropin (hCG) हार्मोन के आधार पर प्रेग्नेंसी की पुष्टि करती है। लेकिन मेडिकल तौर पर प्रेग्नेंसी की जांच के लिए गर्भवती महिला को अल्ट्रासाउंड करने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा, कुछ जरूरी टेस्ट या जांच भी की जाती हैं, जिनसे यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि प्रेग्नेंसी नॉर्मल रहेगी, जैसे ब्लड प्रेशर, वेट एसेसमेंट (गर्भवती का वजन), ब्रेस्ट और पेल्विक एग्जामिनेशन आदि।

यही नहीं, प्रेग्नेंसी की पहली तिमाही में ही सेक्सुअल ट्रांसमिटेड डिजीज जैसे क्लैमाइडिया और गोनोरिया की भी जांच की जाती है। इससे यह पता लगाने में मदद मिलती है कि महिला को एसटीडी या अन्य तरह की शारीरिक समस्या तो नहीं है। अगर है, तो जरूरी सावधानियां और ट्रीटमेंट शुरू किया जा सकता है। कई बार, महिला को प्रेग्नेंसी की पहली तिमाही में ब्लड टेस्ट कराने का कहा जाता है। इसमें एनीमिया, हेपाटाइटिस-बी, सिफलिस और एचआईवी जैसी गंभीर बीमारियों के बारे में पता लगाया जाता है। यहां तक कि रूटीन जांच के दौरान पहली तिमाही में महिला की फैमिली मेडिकल हिस्ट्री, सिस्टिक फाइब्रोसिस और स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी की जांच भी की जाती है। अगर महिला को किसी तरह के हेल्थ इश्यूज हैं या शुरुआती दिनों में प्रेग्नेंसी से जुड़ी ज्यादा परेशानी हो रही है, तो थायराइड टेस्ट, हेपाटाइटिस-सी, ट्यूबरक्लोसिस जैसी जांच भी की जाती है।”

प्रेग्नेंसी में किए जाने वाले मेडिकल टेस्ट

Dr. Shobha
Dr. Shobha Gupta, Medical Director and IVF Specialist, Mother's Lap IVF Centre New Delhi
  • क्लैमाइडिया और गोनोरिया जैसे यौन संचारित रोगों (एसटीडी) के लिए यूरिन प्रेग्नेंसी टेस्ट
  • एनीमिया, लो ब्लड सेल काउंट
  • हेपेटाइटिस बी, सिफलिस और एचआईवी
  • सिस्टिक फाइब्रोसिस और स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी
  • ब्लड ग्रुप ABO और Rh फैक्टर
  • HB और आयरन का स्तर
  • ब्लड ग्लूकोस
  • TSH या थायराइड स्टिमुलेटिंग हार्मोन
  • पैप स्मीयर (अगर हाल ही में नहीं कराया गया है)
  • ब्लड प्रेशर

प्रेग्नेंसी की पहली तिमाही में डाइट

Divya Gandhi, Dietitian and Nutritionist, Diet N Cure

प्रेग्नेंसी की पहली तिमाही में महिलाओं को अपनी डाइट को लेकर विशेष ध्यान रखना चाहिए। जैसा कि हम जिक्र कर रहे हैं, प्रेग्नेंसी के पहले चरण में महिला को कई तरह की शारीरिक समस्या का सामना करना पड़ता है, जैसे जी मचलाना, उल्टी और मॉर्निंग सिकनेस होना। ऐसे में महिला को अपना नॉर्मल डाइट रूटीन फॉलो करने में दिक्कत आ सकती है। यही कारण है कि विशेषज्ञ पहली तिमाही में महिला को डाइट के संबंध में कॉन्शस रहने की सलाह दी जाती है। डाइट एन क्योर की डायटिशियन और न्यूट्रिशनिस्ट दिव्या गांधी पहली तिमाही के लिए डाइट प्लान सजेस्ट करती है-

  • थोड़ा-थोड़ा करके दिन में कई बार खाएं
  • फ्रेश सब्जियां और फल खाएं
  • प्रिजर्वेटिव वाले फूड्स या प्रोसेस्ड फूड्स खाने से बचें
  • बीन्स, पीनट और व्होल ग्रेन को अपनी बैलेंस्ड डाइट का हिस्सा बनाएं
  • खुद को हाइड्रेटेड रखने के 8-10 ग्लास या इससे ज्यादा पानी पिएं
  • अगर नॉनवेज खाती हैं, तो अंडा, मीट आदि खाएं
  • अगर किसी चीज से एलर्जी है, तो इस बारे में अपने डॉक्टर से बात करें
  • नट्स, दालें भी पहली तिमाही के लिए काफी लाभकारी होती हैं
  • डाइट में प्रोटीन, कैल्शियम जैसे जरूरी न्यूट्रिएंट्स शामिल करें।

प्रेग्नेंसी की पहली तिमाही में बरतें जरूरी सावधानियां

डॉ. शोभा गुप्ता आगे सलाह देती हैं कि प्रेग्नेंसी कंफर्म होते ही कई महिलाएं अपनी सेहत पर विशेष ध्यान देने लगती हैं लेकिन जरूरी सावधानियां नहीं बरततीं, यह सही नहीं है। महिलाएं जरूरी सावधानियां और जीवनशैली में कुछ बदलाव कर प्रेग्नेंसी को आसान बना सकती हैं-

  • नियमित रूप से फिजिकली एक्टिव रहें। इन दिनों हैवी वर्कआउट न करें। लेकिन, नियमित वॉक करें। इससे आप एनर्जेटिक रहेंगी और ब्लड सर्कुलेशन में भी सुधार होगा।
  • डॉक्टर की सलाह पर सभी जरूरी विटामिन्स, मिनरल्स और फॉलिक एसिड लें।
  • अपनी डाइट में हेल्दी चीजें शामिल करें, जैसे फल, सब्जियां, मीट, अंडा और साबुत अनाज।
  • पर्याप्त आराम भी बहुत जरूरी है। इसलिए ओवर वर्क करने से बचें।
  • प्रेग्नेंसी में पर्याप्त मात्रा में पानी पीना आवश्यक होता है। ध्यान रखें, प्रेग्नेंसी की शुरुआती दिनों में डिहाइड्रेशन का रिस्क ज्यादा होता है। इससे बचने के लिए सादा पानी, नींबू पानी और नारियल पानी पिएं। इसके लिए लिक्विड डाइट लें। लेकिन सोडा, कार्बोनेटेड कोल्ड ड्रिंक जैसी चीजें न पिएं।
  • डॉक्टर के साथ आने अप्वाइंटमेंट्स फिक्स करें। जैसे-जैसे समय बीतता रहे, वैसे-वैसे डॉक्टर से मिलें और अपनी जांच करवाती रहें।

प्रेग्नेंसी की पहली तिमाही में भ्रूण का विकास

आखिरी पीरियड के बाद ओवुलेशन शुरू होता है। अगर इस दौरान एग और स्पर्म आपस में मिल जाते हैं, तो संभवतः महिला कंसीव कर लेती है। यहीं से प्रेग्नेंसी की शुरुआती होती है। प्रेग्नेंसी की पहली तिमाही 12 सप्ताह तक चलती है। जैसा कि पहले भी बताया है कि पहली तिमाही बहुत सेंसिटिव और महत्वपूर्ण होती है। इन दिनों महिला द्वारा जरा-सी भी लापरवाही मिसकैरेज (गर्भपात) का कारण बन सकती है। हालांकि, इन्हीं दिनों महिला को काफी ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ता है। भ्रूण के कई अंगों का विकास पहली तिमाही में शुरू हो जाता है।

सप्ताह दर सप्ताह बात करें, तो कंसीव करने के बाद तीसरे सप्ताह तक भ्रूण का आकार नींबू से भी छोटा होता है, जो कि सैकड़ों सेल्स की मदद से बनता है। चौथे सप्ताह में बेबी एक एंब्रेया (Embryo) होता है। यह दो लेयर से बना होता है और इसी समय महिला में प्लेसेंटा (Placenta) भी डेवेलप होने लगता है। वहीं, पांचवे सप्ताह तक पहुचंते ही एंब्रेयो तेजी से विकसित होने लगता है। इसी दौरान, महिला के ब्रेस्ट में दर्द और थकान काफी ज्यादा रहता है। जबकि, छठे सप्ताह में भ्रूण की हार्ट बीट शुरू हो जाती है। इस कंडीशन में महिला को अक्सर मॉर्निंग सिकनेस और ब्रेस्ट में दिक्कतें होने लगती हैं।

सातवें सप्ताह की बात करें, तो इस दौरान भ्रूण के आंख, नाक, कान और मुंह शेप ले रहे होते हैं। इन दिनों महिला को बार-बार पेशाब करने की प्रबल इच्छा होती रहती है। आठवें सप्ताह तक आते-आते भ्रूण में हाथ-पैर और उंगलियां डेवेलप होने लगती हैं। जबकि, गर्भवती महिला को थकान और जी-मिचलाने जैसी शिकायतें अभी भी बनी रहती हैं। नौवें महीने में भ्रूण इंसानी आकार में नजर आने लगता है। 10वें सप्ताह तक ज्यादातर महत्वपूर्ण अंग विकसित हो चुके होते हैं और 11वें सप्ताह से गर्भ में पल रहा शिशु हल्की मूवमेंट करने लगता है। 12वें सप्ताह में शिशु अपने पैरों को हिलाने लगता है और इसी के साथ पहली तिमाही खत्म हो जाती है।

  • दुनिया में हर 10 सेकंड में एक महिला गर्भवती होती है।
  • प्रेग्नेंसी में गर्भाशय अपने सामान्य आकार से 500 गुना तक फैल जाता है।
  • प्रेग्नेंसी में महिला का वजन औसतन 11 से 16 Kg तक बढ़ता है

प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही

प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। खासकर, गर्भवती महिला के नजरिए से देखा जाए, तो यह समय बहुत खास होता है। दरअसल, दूसरी तिमाही से ही महिला का पेट उभरने लगता है यानी गर्भ में पल रहे शिशु का वजन बढ़ने लगता है। भ्रूण के अंगों का और ज्यादा विकास हो रहा होता है, उसकी लंबाई और वजन में भी बदलाव देखने को मिलता है।

प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही में नजर आने वाले लक्षण

दूसरी तिमाही में गर्भावस्था के जो लक्षण नजर आते हैं, वे पहली तिमाही से बिल्कुल अलग होते हैं, जैसे-

  • दूसरी तिमाही में गर्भाशय का आकार बढ़ता है या कहें फैलता है
  • महिला का पेट बाहर की ओर बढ़ने लगता है
  • ब्लड प्रेशर का स्तर अक्सर कम रहता है ऐसे में चक्कर आने, थकान महसूस होने जैसी समस्याएं होती हैं
  • दूसरी तिमाही में महिला गर्भ में पल रहे शिशु की हलचल महसूस करने लगती है
  • गर्भ में बच्चे का विकास तेजी से हो रहा होता है, ऐसे में शरीर में दर्द बढ़ सकता है
  • अचानक बहुत ज्यादा भूख लगने लगती है और बार-बार खाने का मन करता है
  • पेट, स्तन, जांघों और नितंबों पर खिंचाव के निशान नजर आने लगते हैं
  • स्किन में परिवर्तन होने लगते हैं, जैसे निप्पल्स के आसपास की त्वचा अधिक डार्क हो जाती है तथा स्किन पर भी धब्बे नजर आने लगते हैं
  • कुछ महिलाओं को असहनीय खुजली होने लगती है
  • दूसरी प्रेग्नेंसी में पैरों में सूजन की शिकायत भी देखी जा सकती है

प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही में मेडिकल टेस्ट

सामान्यतः पूरी प्रेग्नेंसी के दौरान गर्भवती का यूरिन टेस्ट, ब्लड प्रेशर की जांच और वजन का माप हर महीने किया जाता है। दूसरी तिमाही में भी इसकी अनदेखी नहीं की जाती है। इन जांचों के अलावा दूसरी तिमाही में भी डॉक्टर महिला की मेडिकल हिस्ट्री और हेल्थ कंडीशन के आधार पर कुछ जरूरी टेस्ट करने की सलाह देते हैं। जैसे इस दौरान लेवल-2 का अल्ट्रासाउंड किया जाता है। अगर किसी महिला की हेल्थ कंडीशन सही नहीं है, तो उसे एक से ज्यादा बार अल्ट्रासाउंड कराने को कहा जा सकता है। इसके अलावा, इस दौरान ग्लूकोज स्क्रीनिंग भी की जाती है, ताकि जेस्टेशनल डायबिटीज का पता लगाया जा सके, साथ ही, कुछ रेगुलर टेस्ट दोबारा करने की सलाह दी जा सकती है, जैसे थायराइड टेस्ट, हेपाटाइटिस-सी और ट्यूबरक्लॉसिस (टीबी) आदि।

प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही में डाइट

Divya Gandhi, Dietitian and Nutritionist, Diet N Cure
प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही में महिलाओं को डाइट में पोषक तत्वों को अधिक महत्व देना चाहिए। इसके अलावा, कैल्शियम और आयरन का सेवन बढ़ा देना चाहिए। दिव्या गांधी, डायटिशियन और न्यूट्रिशनिस्ट, डाइट एन क्योर

आपको दूसरी तिमाही में भी पहली तिमाही की तरह डाइट का विशेष ध्यान रखना है। इस समय बच्चे की ग्रोथ हो रही है। ऐसे में मां को चाहिए कि वे अपनी डाइट में कैल्शियम और आयरन से भरपूर चीजों को ज्यादा सेवन करें। न्यूट्रिश्निस्ट दिव्या गांधी सजेस्ट करती हैं कि डाइट में निम्न चीजों को जरूर शामिल करें-

  • दूसरी तिमाही में गर्भवती महिला को दूध, दही और दूध से बने अन्य प्रोडक्ट्स जरूर खाने चाहिए
  • आयरन की आपूर्ति के लिए किनोवा, हरी पत्तेदार सब्जियों आदि का सेवन करें
  • आयरन के साथ हमेशा विटामिन-सी कंज्यूम करें। इसके लिए, अपनी डाइट में विटामिन-सी के स्रोतों जैसे- खट्टे फल, ड्राई फ्रूट्स आदि को महत्व दें।
  • इस समय गर्भवती महिला के लिए ओमेगा-3 फैटी एसिड भी बहुत जरूरी होता है।
  • इन दिनों ओवर ईटिंग करने से बचें। ध्यान रखें कि ओवर ईटिंग करनेसे बिना वजह वेट गेन हो सकता है। यह बच्चे के विकास के लिए सही नहीं है।
  • इसके अलावा, डाइट में विटामिन-बी, विटामिन-डी वाले फूड्स भी शामिल करें। ये दोनों ही विटामिंस, बच्चे के लिए विकास के लिए बहुत जरूरी होते हैं। इसकी आपूर्ति के लिए आप अंडे, पालक, तरह-तरह की दालें डाइट में शामिल करें।
  • प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही में कच्चा मांस और कच्चे अंडे का सेवन न करें। इससे मिसकैरेज का रिस्क बढ़ जाता है।

प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही में बरतें ये जरूरी सावधानियां

दूसरी तिमाही में बच्चे का वजन बढ़ने लगता है। ऐसे में महिला के लिए कई नई चुनौतियां सामने आने लगती हैं। इसलिए, उन्हें इस समय अपनी सेहत का विशेष ध्यान रखना चाहिए। साथ ही जरूरी सावधानियां भी बरतनी चाहिए, जैसे-

  • यूनिसेफ के अनुसार, इन दिनों लोअर बैक और पेल्विक एरिया में दर्द होना सामान्य हो जाता है। ऐसा बच्चे के बढ़ते वजन के कारण होता है। लोअर बैक पेन को मैनेज करने के लिए आवश्यक है कि आप नियमित रूप से एक्सरसाइज करें। जरूरी हो, तो फिजियोथेरेपी के कुछ सेशंस लें। इससे काफी मदद मिलेगी।
  • इस दौरान महिलाओं के शरीर में स्ट्रेच मार्क्स बढ़ने लगते हैं। हालांकि, स्ट्रेच मार्क्स को कम करने का कोई तरीका नहीं होता है। लेकिन, कुछ ऐसे लोशंस मौजूद हैं, जिनकी मदद से स्ट्रेच मार्क्स गहरे नहीं होते हैं।
  • अगर आप रेगुलर वर्कआउट करती हैं, तो ध्यान रखें कि हैवी वर्कआउट न करें। अगर आप किसी भी स्पेसिफिक एक्सरसाइज को अपनी लाइफस्टाइल का हिस्सा बनाना चाहती हैं, तो बेहतर है कि एक्सपर्ट से कंसल्ट करें।

दूसरी तिमाही में भ्रूण का विकास

प्रेग्नेंसी की पहली तिमाही खत्म होते ही दूसरी तिमाही की शुरुआत हो जाती है। यह 13वें सप्ताह से शुरू होता है। इस समय गर्भ में पल रहे शिशु के फिंगर प्रिंट्स बनने लगते हैं और वह लगभग 3 इंच का हो जाता है। 14वें सप्ताह में गर्भवती महिला पहले की तुलना में अधिक एनर्जेटिक फील करती है, वहीं बच्चे के बाल और स्किन बनने लगते हैं। हालांकि, इसे पूरी तरह बनने में अभी समय है। लेकिन, बच्चे के आईब्रो, अप्पर लिप और चिन की बनावट शुरू हो जाती है। यही नहीं, इस समय बच्चा पहले की तुलना में अधिक एक्टिव होता है और वह पहले की तुलना में तेजी से ग्रो करता है।

आप कह सकते हैं कि इस उम्र में आपके बच्चे का आकार करीब एक बड़े नींबू जैसा हो जाता है। पंद्रहवें सप्ताह में बच्चे का सेक्स रिवील होता है, यानी यही वह समय है जब पता चल सकता है कि बच्चा बेटा है या बेटी। साथ ही, बच्चे में कई छोटे-छोटे, लेकिन अहम डेवेलपमेंट जारी रहते हैं। जैसे, इसी समय बच्चे के टेस्ट बड्स (स्वाद ग्रंथियां) बनने लगते हैं और नर्व्स ब्रेन से कनेक्ट होती हैं। हालांकि, इस तरह की चीजें पूरी तरह डेवेलप होने में काफी समय लेती हैं। 15वें सप्ताह में बच्चे के पैर, उसके हाथों की तुलना में अधिक बड़े हो जाते हैं और उसके चेहरे में भी कुछ बदलाव देखने को मिलते हैं।

इस समय बच्चा अपना अंगूठा चूसने लगता है, उबासियां लेता है और खुद को स्ट्रेच भी करना शुरू कर देता है। 16वें सप्ताह में शिशु के स्कैल्प का एक पैटर्न डेवेल हो जाता है और बच्चे का हार्ट भी पंप करने लगता है। 17वें सप्ताह की बात करें, तो इस समय बच्चे की सॉफ्ट कार्टिलेज मजबूत हड्डियों में बदलने लगती हैं। ऐसे में मां को चाहिए वे कि अपनी डाइट में कैल्शियम ज्यादा शामिल करे, जिससे बच्चे की हड्डियों को बेहतर और मजबूती से ग्रो करने में मदद मिले। इस समय बच्चे के स्वेट ग्लैंड्स भी बनने लगते हैं, जो कि अगले सप्ताह तक पूरे होते हैं।

अठारहवें सप्ताह में बच्चे के गुप्तांग पूरी तरह विकसित हो जाते हैं, जिसे अल्ट्रा साउंड की मदद से देखा जा सकता है, हालांकि भारत में लिंग परीक्षण गैर कानूनी है। 19 से 20वें सप्ताह में बच्चा हिचकियां लेने लगता है और उसके मूवमेंट में भी सुधार होता है। इसे मां बिना किसी परेशानी के महसूस कर सकती है।

  • ज्यादातर बच्चे या तो तय समय से पहले जन्म लेते हैं या तय समय के बाद। केवल 5% बच्चे ही तय समय पर जन्म लेते हैं।
  • गर्भ में ही शिशु की स्वाद ग्रंथियां बन जाती हैं यानी उन्हें स्वाद का पता चलने लगता है।

प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही

प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही काफी मुश्किलों भरी होती है। इस समय न सिर्फ गर्भ में पल रहे शिशु का वजन बढ़ रहा होता है, बल्कि वह आकार में भी बड़ा हो रहा होता है। यहां तक आते-आते बच्चा पहले की तुलना में ज्यादा बड़ा हो जाता है। इस समय अक्सर गर्भवती महिला की असहजता बढ़ जाती है, क्योंकि धीरे-धीरे उसके डिलीवरी के दिन नजदीक आ रहे होते हैं। यह दौर महिला के लिए फिजिकली और इमोशनली काफी चैलेंजिंग होता है।

तीसरी तिमाही में नजर आने वाले लक्षण

यूनिसेफ के अनुसार, वैसे तो हर महिला की प्रेग्नेंसी की जर्नी अलग होती है और इसके लक्षण भी अलग-अलग हो सकते हैं। पिछली दोनों तिमाहियों की तुलना में तीसरी तिमाही का अनुभव बिलकुल अलग होता है। इस दौरान कुछ अलग लक्षण नजर आ सकते हैं, जैसे-

  • सीने में जलन
  • बवासीर
  • सांस लेने में दिक्कत
  • सोने में दिक्कत होना
  • पैरों, हाथों और चेहरे में सूजन

प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही में मेडिकल टेस्ट

kidshealth.org के अनुसार, पिछली दोनों तिमाहियों की तरह, आखिरी तिमाहीमें भी अल्ट्रासाउंड कराने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा इस दौरान एनीमिया, हेपाटाइटिस-बी, सिफलिस, एचआईवी और महिला की हेल्थ कंडीशन के आधार पर कुछ अन्य टेस्ट भी सजेस्ट किए जा सकते हैं।

प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही में डाइट

Divya Gandhi, Dietitian and Nutritionist, Diet N Cure

प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही में महिला को अपना और ज्यादा ध्यान रखना चाहिए क्योंकि इस समय बच्चा तेजी से ग्रो कर रहा होता है। ऐसे में महिला को सभी तरह के न्यूट्रिएंट्स से भरपूर आहार अपनी डाइट में शामिल करने चाहिए, जैसे-

  • मौसमी फल
  • सब्जियां
  • साबुत अनाज
  • हेल्दी फैट और ऑयल
  • विटामिन-ए युक्त चीजें जैसे मछली, डेयरी प्रोडक्ट, पालक और गाजर
  • विटामिन-सी युक्त चीजें, जो आयरन के अवशोषण के लिए आवश्यक हैं। संतरा, कीवी, स्ट्रॉबेरी विटामिन सी के लिए कुछ अच्छे विकल्प हैं।
  • अंडे, ब्रोकली जैसी हेल्दी चीजें भी डाइट का हिस्सा बना सकते हैं।

प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही में बरतें ये जरूरी सावधानियां

Dr. Ruchi Srivastava, Gynecologist Senior Consultant, Sharda Hospital

प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही में महिला को बहुत ज्यादा सावधान रहना चाहिए। इस समय आपका बच्चा फाइनल शेप लेता है। उसका वेट और साइज बढ़ता है। ऐसे में अगर महला जरूरी प्रिकॉशन न ले, तो बच्चा अंडरवेट हो सकता है या फिर उसे किसी तरह की दिक्कत भी हो सकती है। इससे निपटने के लिए आप यहां बताए गए टिप्स अपनाएं-

  • डॉक्टर द्वारा जो भी विटामिन के सप्लीमेंट्स आपको दिए गए हैं, उन्हें नियमित रूप से लेते रहें।
  • इन दिनों एक्टिव रहने की कोशिश करें। यह नॉर्मल डिलीवरी को भी सपोर्ट करता है।
  • तीसरी तिमाही में कीगल एक्सरसाइज करना काफी लाभकारी हो सकता है।
  • ज्यादा से ज्यादा पानी पिएं ताकि बॉडी डिहाइड्रेट न हो। ध्यान रखें कि इस समय डिहाइड्रेट होना सही नहीं है।
  • पर्याप्त रेस्ट करना भी जरूरी है। अगर आप रेस्ट नहीं करेंगी, तो थकान महसूस करेंगी। यह आपकी हेल्थ के लिए सही नहीं है।
  • इन दिनों स्मोकिंग, कैफीन जैसी चीजों से दूर रहें।
  • नौवें महीने में ट्रैवल करना भी सुरक्षित नहीं होता है।
  • भारी सामान उठाने से बचें।
  • ज्यादा झुककर काम न करें। इससे बच्चे पर दबाव बढ़ सकता है, जो कि सही नहीं है।

प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही में भ्रूण का विकास

28वें सप्ताह के साथ आपकी तीसरी तिमाही शुरू हो जाती है। यह आखिरी तिमाही भी कहलाई जाती है। 28, 29 और 30वें सप्ताह में बच्चा अपनी आंखों के जरिए लाइट देख सकता है, उसकी मसल्स और लंग्स ज्यादा मेच्योर हो जाते हैं और ब्रेन डेवेलपमेंट भी तेजी से हो रहा होता है। वहीं, 30वें सप्ताह में आकर बच्चे का लगभग एक किलो वजन बढ़ जाता है। 31वें सप्ताह में महिला अपने बच्चे के किक को और भी बेहतर तरीके से महसूस कर सकती है। जबकि, 32वें सप्ताह में महिला का गर्भाशय और बढ़ जाता है।

33वें सप्ताह में गर्भवती महिलाएं महसूस कर सकती हैं कि बच्चे का भार पेट के निचले हिस्से पर काफी ज्यादा बढ़ गया है। दरअसल, इस समय बच्चे के सिर का भार काफी बढ़ जाता है। यहां तक कि कई मामलों में देखा जाता है कि बच्चे का जन्म समय से पहले हो जाता है। हालांकि, इस समय तक बच्चे का ब्रेन ग्रो कर रहा होता है। धीरे-धीरे उसकी स्किन में भी बदलाव देखने को मिलते हैं। स्किन की रेडनेस कम होती है और ज्यादा स्मूद होने लगती है।

34वें सप्ताह में बच्चे के नाखून पूरी तरह ग्रो कर चुके होते हैं और बच्चा साउंड, लाइट और टच के प्रति रिएक्ट करने लगता है। 35वें सप्ताह में बच्चे की किडनी पूरी तरह विकसित हो चुकी होती है कि वे मल और मूत्र करने में सक्षम हो चुके होते हैं। 36वें, 37वें और 38वें सप्ताह में भी महिला नोटिस करेगी कि उसका बच्चा और ज्यादा बेहतर शेप ले चुका है, हड्डियां ज्यादा मजबूत हो गई हैं और पैरों के नाखून भी पूरी तरह ग्रो कर चुके हैं। कुल मिलाकर, आप कह सकते हैं कि 39वें और 40वें सप्ताह में आते-आते बच्चा पूरी तरह ग्रो कर चुका होता है और अब वह इस दुनिया में आने के लिए पूरी तरह से तैयार है। आमतौर पर 41वें सप्ताह तक महिला लेबर के लिए तैयार हो जाती है।

  • एक वयस्क के शरीर में 206 हड्डियां होती हैं, जबकि नवजात के शरीर में लगभग 300 हड्डियां होती हैं।
  • गर्भ में शिशु न सिर्फ बाहर की आवाज सुनता है बल्कि उन आवाजों पर प्रतिक्रिया भी करता है।

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