डिलीवरी के बाद एक मां की जिंदगी का अगला अहम पड़ाव होता है ब्रेस्टफीडिंग। यह सफर हर मां के लिए अलग-अलग होता है, किसी के लिए ये आसान और खुशनुमा होता है, तो कुछ महिलाओं को इस दौरान दर्द, थकान, निप्पल्स में क्रैक या दूध न आने के स्ट्रेस को झेलना पड़ता है, लेकिन इन मुश्किलों के बीच मां और शिशु के बीच जो गहरा रिश्ता बनता है, वह जीवनभर के लिए अनमोल हो जाता है। इस लेख में हम ऐसी 6 मांओं की कहानियां लेकर आएं हैं, जिन्होंने अपनी चुनौतियों को खुलकर स्वीकार किया है और अपनी अनसुनी कहानियों को बताया है। इसके साथ एक्सपर्ट्स के समाधान भी हैं, जिसमें शिशु को सही पोजीशन में रखने से लेकर ब्रेस्ट मिल्क बढ़ाने के कई तरीके भी बताएं हैं। इन सब पर बात करने से पहले आइये जानते हैं कि देश में ब्रेस्टफीडिंग को लेकर क्या कहते हैं आंकड़े -
मेरा बेटा अभी तीन हफ्ते का है। पहली बार मां बनी थी तो शुरुआत में मुझे बहुत घबराहट होती थी, क्योंकि मुझे अपने बेटे को लैच कराने में 15 से 20 मिनट लग जाते थे। इस दौरान मेरा बेटा बहुत ज्यादा रोने लगता, तो मैं टेशन में आ जाती थी। मेरे निप्पल में क्रेक्स भी हो गए थे, जिसकी वजह से मुझे काफी परेशानी आ रही थी, लेकिन डॉक्टर ने क्रेक निप्पल्स को ठीक कराने में मदद की साथ ही ब्रेस्टफीड पॉजीशन्स भी बताए। इसके अलावा यह भी बताया कि बच्चे को डकार दिलाएं ताकि बेटा मुंह से दूध न निकाले। इससे अब ब्रेस्टफीडिंग जर्नी काफी आसान हो गई है। अगर किसी को कोई समस्या होती है, तो डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए ताकि यह जर्नी आसान हो जाए जैसे मेरी हो गई है।

ब्रेस्टफीडिंग में लैचिंग बहुत ही महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। अगर लैचिंग सही न हो तो मां को ब्रेस्टफीडिंग कराते समय दर्द होता है, निप्पल्स में क्रैक पड़ सकते हैं और सूजन आ सकती है। मां को यह ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे के मुंह में निप्पल का निचला काला भाग जरूर जाए। जब भी लैच कराना है, तो पहले शिशु की नाक को निप्पल से स्पर्श कराते हैं। जैसे ही शिशु मुंह खोलता है, वैसे ही निप्पल और नीचे के हिस्से को शिशु के मुंह में डाला जाता है। इससे शिशु अच्छे तरीके से लैच कर पाता है।

जब मुझे बेटा हुआ, तो लगा कि ब्रेस्टफीड कराना बड़ा ही नेचुरल तरीका है। मेरा बेटा आराम से ब्रेस्टफीड कर लेगा, लेकिन जब मैंने शुरू किया तो बेटे को लैच करना ही नहीं आ रहा था और मुझे बेटे को सही पॉजीशन में रखने में समस्या आ रही थी। शुरुआत में तो मुझे बड़ी घबराहट हो रही थी, फिर मैंने डॉक्टर से सलाह ली। उन्होंने मुझे सही तरीका बताया तब लगा कि अब तो कोई तकलीफ नहीं होगी, लेकिन शायद यह शुरुआत थी। इसके बाद मेरे ब्रेस्ट में सूजन आने लगी। बहुत अधिक मात्रा में दूध भर जाने से कठोर और दर्दनाक हो जाता था। एक बार फिर से डॉक्टर ने ब्रेस्ट की सूजन को मैनेज करने के तरीके बताए।

अगर पोजीशन सही होती है, तो शिशु के साथ मां को भी आराम मिलता है। महिलाएं इन स्थितियों में अपने शिशु को रख सकती हैं।
क्रैडल होल्ड (Cradle Hold)
इस पोजीशन में मां अपने शिशु को अपनी बांह पर इस तरह रखती है कि बच्चे का सिर मां की कोहनी पर और शरीर मां की छाती के सामने हो।
क्रॉस-क्रैडल होल्ड (Cross-Cradle Hold)
इसमें मां शिशु के सिर को अपने एक हाथ से सपोर्ट करती है और दूसरे हाथ से ब्रेस्ट को सपोर्ट करती है।
फुटबॉल होल्ड (Football Hold)
सिजेरियन डिलीवरी के बाद मां अपने शिशु को बगल में रखती है, जैसे फुटबॉल पकड़ा हो, और सिर को हाथ से सपोर्ट करती है।
साइड-लाइंग पोजीशन (Side-Lying Position)
इस पोजीशन में मां एक तरफ लेटकर बच्चे को स्तनपान कराती है।

मुझे अपने जुड़वा बच्चों को फीड कराने में बड़ी परेशानी होती है, एक को फीड कराती हूं तो दूसरा रोने लगता है। ब्रेस्टफीड से दोनों बच्चों का पेट नहीं भरता, क्योंकि दो बच्चों के लिए इतना ब्रेस्टफीड नहीं हो पाता था। मैं पहली बार मां बनी हूं और वो भी जुड़वा बच्चों की तो काफी दिक्कत महसूस करती थी। इसलिए मैंने अब डॉक्टर की सलाह पर फार्मूला मिल्क देना शुरू किया है और साथ ही ब्रेस्टफीड भी कराती हूं। दोनों तरह से दूध देने पर अब मेरे बच्चे भी भूख की वजह से नहीं रोते। साथ ही मुझे लगता है कि ब्रेस्टफीड कराते समय मेरी सारी एनर्जी शरीर से जा रही है। मैं खुद को बहुत ज्यादा थका हुआ महूसस करती हूं।

जिस पोजीशन में मां ब्रेस्टफीड कराती है, उस स्थिति में घंटों बैठे रहने से भी मां को थकान हो जाती है। मां बनने के शुरुआती स्टेज में मां के जख्म भी भर रहे होते हैं, ऐसे में बैठकर शिशु को फीड कराने में मां को काफी दिक्कत होती है। ब्रेस्टफीडिंग में जब भी शिशु को भूख लगती है, तो मां को ब्रेस्टफीड कराना ही पड़ता है। शुरुआती स्टेज में शिशु के सोने का समय और स्टूल करने का समय फिक्स नहीं होता। इस वजह से भी मां को दिन में कई बार फीड कराना पड़ता है। जब शिशु 4-5 महीने का हो जाता है, तो मां को इस तरह की परेशानी नहीं होती।


मेरी बेटी 8 महीने की हो गई है, लेकिन जब शुरुआत में मैं ब्रेस्टफीड करा रही थी, तो ब्रेस्ट मिल्क बहुत कम हो गया था। मेरी बेटी दिन-रात रोती रहती और उसकी नींद भी पूरी नहीं होती थी। उसे रोता देखकर मुझे बड़ी तकलीफ होती थी कि मैं उसे फीड नहीं करा पा रही हूं।


अक्सर मांओं को यही लगता है कि कहीं उनके शिशु के लिए दूध की मात्रा कम न हो जाए, इसलिए वे कई तरह के घरेलू नुस्खे भी आजमाती हैं। मैं अक्सर नई मांओं को कुछ ये तरीके अपनाने की सलाह देती हूं।
बार-बार और सही तरीके से ब्रेस्टफीड कराना
जब भी शिशु निप्पल्स को चूसता है, तो ब्रेस्ट मिल्क और ज्यादा बनता है। यह एक प्राकृतिक तरीका है। इसलिए जब भी बच्चे को भूख लगे, तो ब्रेस्टफीड जरूर कराना चाहिए। जब एक ब्रेस्ट पूरी तरह से खाली हो जाए, तभी दूसरे स्तन से पिलाना चाहिए। ऐसा करने से शरीर को ज्यादा दूध बनाने का संकेत मिलता है।
स्किन-टू-स्किन कॉन्टैक्ट
जब शिशु अपनी मां की छाती गर्मी महसूस करता है, तो इससे न सिर्फ प्यार और जुड़ाव बढ़ता है, बल्कि इससे ऑक्सीटोसिन हार्मोन भी एक्टिवेट होते हैं। यही ब्रेस्ट मिल्क को बढ़ाने में मदद करता है।
मां का खानपान और हाइड्रेशन
ब्रेस्ट मिल्क में मां का खानपान बहुत महत्व रखता है। अनाज, सब्जियां, प्रोटीन और अच्छे फैट्स का बैलेंस बहुत जरूरी है। इसके साथ मां को तरल पदार्थ जैसे कि सूप, ताजा जूस और पानी लेना भी महत्वपूर्ण है। वैसे बहुत सारी मांए मेथी, सौंफ और जीरा का पानी भी लेती हैं। यह भी दूध बढ़ाने में मददगार होते हैं।
आराम करना और स्ट्रेस न लेना
वैसे तो हर मां की ब्रेस्टफीडिंग अलग होती है, किसी का सफर आसान होता है तो किसी का मुश्किल लेकिन हर मां को स्ट्रेस से दूर रहना चाहिए। धीरज से काम लेना चाहिए और ज्यादा से ज्यादा आराम करना चाहिए।
डॉक्टर की सलाह लें
अगर मां को ब्रेस्ट मिल्क नहीं आ रहा तो परेशान न हों। ऐसे समय पर लैक्टेशन कंसल्टेंट या गायनेकोलॉजिस्ट से सलाह लेना मददगार होता है। हो सकता है कि बच्चे को लैच करने के तरीके या फिर हार्मोंनल असंतुलन के कारण ब्रेस्ट मिल्क न बन रहा हो। इसलिए सलाह लेने से मुश्किल आसानी से हल हो जाती है।

वैसे तो ब्रेस्टफीड कराने में कभी कोई समस्या नहीं हुई लेकिन रात में कई बार फीड कराने की वजह से मेरी नींद पूरी नहीं हो पाती। वर्किंग होने के कारण दिनभर ऑफिस में रहती हूं। रात में नींद न पूरी होना और दिनभर काम करने से कई बार सिरदर्द या चिड़चिड़ापन होने लगता है, लेकिन जब मैं अपनी बेटी को देख लेती हूं तो काम करने की एनर्जी वापस आ जाती है।

वर्किंग मॉम्स के लिए रात में ब्रेस्टफीड कराना एक चुनौती भरा काम हो सकता है। बार-बार उठना, नींद का टूटना और सुबह ऑफिस की तैयारी के चलते महिलाओं को थकान और चिड़चिड़ापन हो जाता है। ऐसे में थोड़ी प्लानिंग और सही आदतों से आप अपने समय और ऊर्जा को बेहतर तरीके से मैनेज कर सकती हैं।

मेरी बेटी ढाई साल की हो गई है और वह अभी भी ब्रेस्टफीड करती हूं। दरअसल मेरे साथ समस्या यह है कि जब भी मेरी बेटी को सोना होता है, तो वह ब्रेस्टफीड के लिए जिद करती है। जब वह किसी और के साथ होती है, तो ब्रेस्टफीड नहीं चाहिए, लेकिन मेरे साथ होने पर रोने लगती है। हालांकि वह खाना भरपेट खाती है, लेकिन सोते समय यह उसकी आदत बन गई है। इस कारण उसकी नींद भी पूरी नहीं होती और अब थोड़ी बड़ी हो गई है, तो मुझे ब्रेस्टफीड कराने में दिक्कत होती है।

बच्चे जब छोटे होते हैं, तो मां का दूध ही संपूर्ण पोषण देता है। इससे शिशु मां का सपोर्ट महसूस करता है। जब बच्चा एक साल से ऊपर का हो जाता है, तब उसे गाय या भैंस का दूध देने की सलाह दी जाती है। उससे बच्चे को एलर्जी होने की संभावना हो सकती है। जब बच्चा मां के दूध से दूसरे दूध पर आता है, तो उसे स्वाद पसंद नहीं आता। इस वजह से भी शिशु को मां का दूध छोड़ने में दिक्कत आती है। इसके अलावा, बोतल का निप्पल थोड़ा सख्त होता है, जिसे बच्चे को अपनाने में दिक्कत होती है।


प्रेग्नेंसी के दौरान मां के शरीर पर काफी फैट स्टोर हो जाता है। अगर शिशु पूरी तरीके से ब्रेस्टफीड करे और मां की डाइट प्रोटीन और फैट से भरपूर हो तो समय के साथ धीरे-धीरे वजन कम हो सकता है।
जब शिशु मां के ब्रेस्ट को पूरी तरह से लैच करने लगता है, तो करीब 15 से 20 मिनट में अपना पेट भर लेता है। बिल्कुल शुरू की स्टेज में यह समय कम या ज्यादा भी हो सकता है।
ब्रेस्टमिल्क को निकालकर कमरे के तापमान (25 degree C ) में चार घंटे, फिज में करीब चार दिन और डीप फ्रिजर में 6 महीने तक स्टोर किया जा सकता है।
ब्रेस्टमिल्क को किसी भी प्रकार के स्टील या फूड ग्रेड प्लास्टिक की ढक्कन वाली डिब्बी में स्टोर किया जा सकता है। कांच की शीशी भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
दुनिया की हर रिसर्च कहती है कि शिशु को पहले 6 महीने सिर्फ मां का दूध ही पिलाना चाहिए। इसके बाद कंप्लीमेंट्री आहार देना चाहिए। मां का दूध कम से कम 2 साल तक शिशु को मिलना चाहिए।

ब्रेस्टफीडिंग का सफर चुनौती भरा जरूर होता है, लेकिन सही जानकारी और धीरज से इस सफर को आसान बनाया जा सकता है। इस लेख का मकसद भी यही बताना था कि आमतौर पर जो मांओं के सवाल और परेशानियां होती हैं, उन्हें डॉक्टर की मदद से ठीक किया जा सकता है। यही वजह है कि मां को हमेशा सलाह दी जाती है कि किसी भी परेशानी को सहने की बजाय लेक्टेशन एक्सपर्ट या अपनी डॉक्टर से मिलकर समाधान करें क्योंकि सही तरीके से कराई गई ब्रेस्टफीडिंग न सिर्फ बच्चे के विकास और इम्युनिटी के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह मां और शिशु के बीच जीवनभर के अटूट रिश्ते को मजबूत करती है। उम्मीद है कि इस जानकारी की मदद से मां का ये सफर और भी खूबसूरत व यादगार बन जाएगा।