True Story of Pregnancy in Hindi: जब महिलाएं दूसरी बार प्रेग्नेंट होती है, तो उन्हें पहले बच्चे की परेशानी रहती हैं कि वह कैसे रिएक्ट करेगा, कहीं वह मेंटल स्ट्रेस में न आ जाए। दूसरी प्रेग्नेंसी में महिलाएं इस तरह के कई सवालों से परेशान होती हैं। एक तरफ महिला कई तरह के शारीरिक और मानसिक बदलाव महूसस कर रही होती है, तो दूसरी तरफ अपने बड़े बच्चे की टेंशन में होती है। ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए और कैसे बड़े बच्चों को अपने इस सफर में शामिल करना चाहिए, इसके बारे में गुजरात के सूरत में रहने वाली मॉम ब्लॉगर सुरभि मिस्त्री ने अपना अनुभव हमारे साथ शेयर किया। ओनली माय हेल्थ के ‘Maa Strong’ कैंपेन में हम महिलाओं के प्रेग्नेंसी से लेकर पोस्टपार्टम और फिटनेस के सफर को आपके साथ शेयर कर रहे हैं, जिसमें उनके हौसलों और हिम्मत की कहानियां है। आज सूरत में रहने वाली सुरभि ने अपने अनुभव हमारे साथ साझा किए हैं।
प्रेग्नेंसी के शुरुआत में हुई दिक्कत
33 साल की उम्र में सुरभि जब दूसरी बार प्रेग्नेंट हुईं तो शुरुआत में उन्हें कई दिक्कते हुईं। हालांकि, उन्हें पता था कि उल्टी या मतली होना आम है। लेकिन उनके साथ इस बार कुछ अलग तरह की समस्याएं हो रही थीं। इस बारे में बताते हुए सुरभि कहती हैं, “प्रेग्नेंसी के शुरुआती दिनों में बहुत समस्या होती थी। सांस फूलने लगती थी और बेचैनी महसूस होती थी। कुछ काम करने का मन नहीं करता था। हर समय थकान सी लगती थी। कमजोरी बहुत ज्यादा रहती थी। वैसे दूसरी और तीसरी तिमाही में थोड़ा सही रहा, क्योंकि घर पर मेरे पति और बेटी बहुत सपोर्ट करते थे। अगर मुझे किसी भी तरह की परेशानी होती, तो दोनों मेरा पूरा ध्यान रखते थे।”
इसे भी पढ़ें: मिसकैरिज के बाद सृष्टि को अगली प्रेग्नेंसी में रहा नाक में तेज दर्द, जानें उनकी मुश्किल जर्नी
प्रेग्नेंसी के दौरान पहली बेटी की टेंशन
सुरभि कहती हैं, “जब मैं दूसरी बार प्रेग्नेंट हुई तो मुझे अपनी बेटी भी टेंशन थी। वह उस समय करीब 7 साल की थी। हम दोनों पति-पत्नी को लग रहा था कि कहीं डिलीवरी के बाद वह खुद को अकेला महसूस न करे और किसी तरह का मेंटल प्रेशर न ले। बच्चे बहुत ज्यादा संवेदनशील होते हैं, हमें लगा कि उसे पहले समझाना सही रहेगा। हम दोनों ने बेटी को प्रेग्नेंसी के बारे में बताते हुए कहा कि उसका भाई या बहन आने वाला है। हालांकि, वह भाई या बहन के आने की बात सुनकर बहुत खुश हुई थी। फिर हमने उसे बातों-बातों में समझाया कि मुझे अस्पताल में रहना होना और उसे घर पर किसी और परिवार के साथ रहना होगा। वो अकेले कभी मेरे बिना रही नहीं थी, इसलिए थोड़ा ज्यादा डर लग रहा था।”
प्रेग्नेंसी में बेटी को अपना साथी बनाया
सुरभि कहती हैं, “जब बेटी को मेरी प्रेग्नेंसी का पता चला तो उसके कई सवाल थे कि बेबी कैसे बढ़ा होगा, या किसके जैसा दिखेगा, कैसे रहेगा। हमने शांति के साथ सभी सवालों को सुनते थे और उसके सवालों के जवाब देते थे। जब मैं अल्ट्रासाउंड कराने जाती थी, तो उसे साथ लेकर जाती थी। वह नए बच्चे के आने पर इतनी ज्यादा उत्साहित थी कि उसके पास रोज नए सवाल होते थे और हम उन सवालों के जवाब के साथ हाजिर रहते थे। उसे समझाते रहते और आने वाले समय के लिए मानसिक रुप से तैयार भी कर रहे थे। हम उसके साथ बैठकर रोज बात करते और काफी समय बिताते थे।”
इसे भी पढ़ें: ब्रेस्टफीडिंग के दौरान पीठ और कूल्हों के दर्द से रही परेशान, फीडिंग तकिये ने कीर्ति दुबे की जर्नी को किया आसान
डिलीवरी के बाद हुई दिक्कत
सुरभि ने बताया, “डिलीवरी के बाद 10-15 दिन तो आसानी से चले गए लेकिन तकलीफ तब बढ़ गई जब मैं अस्पताल से घर आई और रात के समय उसे मेरे साथ सोना था। हमारे घर में एक प्रथा है कि डिलीवरी के 40 दिन तक रसोई या किसी अन्य कमरे में जाकर नहीं सो सकते। हालांकि परिवार का कोई न कोई उसके साथ होता था, लेकिन बच्चा है तो कभी-कभार जिद करता है। मैंने उसे समझाया और फिर 40 दिन बाद अपने पास सुलाया। हम भी पूरी कोशिश करते थे कि उसे अकेला न रहने दें और उसके कामों में मदद करें। मैं बेटे के सोने के बाद उसके साथ समय बिताती थी।”
सुरभि अपनी बेटी के बारे में कहती हैं, “हालांकि 7 साल के छोटे बच्चे से आप बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं कर सकते हैं, लेकिन मेरी बेटी ने अपनी स्कूल की किताबें समेटना, होमवर्क करना, नहाना और खुद ही कपड़े पहनना शुरू कर दिया। वह बेटे के साथ भी खेलती थी। यह देखकर मेरा मेंटल स्ट्रेस बिल्कुल खत्म हो गया।”
View this post on Instagram
नई माताओं के लिए सलाह
सुरभि ने कहा, “अगर आप दूसरी बार प्रेग्नेंट हैं और आपके बच्चा थोड़ा बड़ा है, तो उसे शुरुआत से ही समझाएं ताकि वह खुद को अकेला महसूस न करे। उनके सवालों को ध्यान से सुनें और उनके जवाब शांति से दें। उनके साथ समय बिताएं ताकि वह नए मेहमान से प्यार करे और उसके प्रति किसी तरह की बुरी भावना न रखें।